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लवस्टोरी ऑफ सोना-37

लव स्टोरी ऑफ सोना पार्ट 37
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सोना-" बहुत बढ़िया डोसा है यहां का..!'

रवि-" बढ़िया तो है लेकिन यही दोसा अपने लखनऊ शहर में ₹100 का मिल जाता..! और यहां कम से कम एक हज़ार का होगा. !"

सोना-" अपनी मानसिकता को बदलो डियर। और इस बात को मत भूलो कि झुग्गी में रहो,  तो किराया 1000 पड़ता है। महल में रहो तो किराया 20000 पड़ता है। तो क्या एक करोड़ रूपया अपने पास में होने के बावजूद हम  झुग्गी में रहेंगे..?"

रवि-" मगर झुग्गी में रहने वाले भी इंसान होते हैं..!"

सोना-" मैं कब कह रही हूं कि झुग्गी में रहने वाले इंसान नहीं होते..! लेकिन इस बात को समझना होगा तुम्हें,, कि कि महिलाओं और झुग्गी का फर्क हमेशा बना रहेगा, और इस फर्क का होना जरूरी भी है।

क्योंकि अगर यह फर्क ना होता, तो मुझे भी आज एका करोड़ रुपए ना मिलते। बल्कि झुग्गी वालों की हैसियत के अनुसार  इस फिल्म में काम करने के लिए सिर्फ दो चार हज़ार रुपये ही मिलते । 

और तब यहां एरोप्लेन से मैं न आती, बल्कि यही श्रीकांत मुझसे मुंबई में ही आकर मिलने को कहता, और मैं अपने किराए से साधारण बोगी में धक्के खाते हुए मुंबई आती।

और  मुंबई में आकर आकर मुझको ताज होटल में न बिठाता, बल्कि स्टूडियो में बुलाता और वही सारी बात फाइनल कर लेता।"

रवि-" कोई इतना गिरा हुआ भी नहीं होता जितना तुम सोच रही हो. !"

सोना-" इससे भी ज्यादा गिरे हुए लोग हैं इस मुंबई में.!  लेकिन यहां का यह  दस्तूर है , कि  यहाँ जितना ज्यादा पैसा खर्च करोगे, उतने ही बड़े कलाकार माने जाओगे..! और उतनी ही ज्यादा तुम्हें इज्जत मिलेगी .! और अगर दो कौड़ी में काम चला लोगे, तो कलाकार भी दो  कौड़ी के बन जाओगे। और यहाँ कोई नहीं पूछेगा तुम्हें..!"

रवि-" लेकिन इस तरह की सोच सिर्फ लड़कियों की हो सकती है, क्योंकि वो पापा की परी होती हैं!, इसीलिए  उड़ना उनका थोड़ा आसान होता है! लेकिन लड़कों के पंख नहीं होते , इसलिए वह अपनी धरती से जुड़े होते हैं..! अगर मेरे भी पंख होते, तो मैं भी हवा में उड़ कर बात करता तुमसे..!"

सोना-" तुम गलत बोल रहे हो। अगर लड़कियां उड़ती है, तो लड़के भी उड़ते हैं। और अधिकतर उड़ने वाली लड़कियों के पंख काट दिए जाते हैं और बेचारी बेबस होकर और अपनी सारी इच्छाओं को मारकर घर में तड़पती रहती हैं।

जबकि पंख लड़कों के भी होते हैं  और वो उड़ने को पूरी तरह स्वतंत्र होते हैं, क्योंकि उनके पंखों को काटा नहीं जाता.! हाँ, ये बात अलग है, कि लड़कों में इतनी योग्यता ही ना हो,  कि वो उड़ सके और आसमान की बुलंदियों को छू सके..!

लेकिन जिन लड़कों में योग्यता होती है,  वो उड़ते भी है और आसमान की बुलंदियों को भी छूते हैं।
जबकि इस देश में लाखों लड़कियां ऐसी है जिनमें योगिता होने के बावजूद वो  तभी उड़ पाती हैं जब किस्मत भी उनका साथ देती है..!

क्योंकि आज के जमाने में भी अधिकतर लड़कियों  से रटीरटाई यही बात कही जाती है , कि शादी के बाद अपने पतिदेव के साथ जहां मर्जी उड़ना। यहां कोई जरूरत नहीं है उड़ने की..!

और जब शादी हो जाती है,  तो पति के बंधन में फंस जाती है।

और अगर बदकिस्मती से सासु मां भी निर्दयी हुई, फिर तो चैन से दो वक्त की रोटी उसे मिल जाए,  यही बहुत है..!"

रवि-"उफ! कितना बोलती है तू..! भगवान ने न जाने कितनी अक्कल दी है तुझको..! क्योंकि बहस बाजी में तो कोई  तुझसे जीत ही नहीं सकता..!"

सोना-" और इस बहसबाजी की भी कीमत होती है। श्रीकांत जी से भी मैंने बहस की थी फिल्म की कहानी के लिए। और उन्हें  मेरी बात मानना पड़ा।

अगर उनसे बहसबाजी ना करती, तो उनकी उसी घिसीपिटी कहानी सुनकर  यस सर..यस सर ..बहुत बढियां..ग़ज़ब..क्या कहानी है.. कुछ ऐसा ही एक्सप्रेशन होता मेरा.. और जब फिल्म रिलीज होकर सिनेमा हॉल में लगती तो वो भी सर पकड़ कर बैठेते, और मेरा भी भविष्य हमेशा के लिए अंधकारमय हो जाता..! और तुम भी ना घर के होते ना घाट के..! और जो अपनी नाक कटती वो अलग से..! क्योंकि इस फिल्म इंडस्ट्री में सिर्फ चढ़ते सूरज को सलाम करते हैं लोग. और डूबते हुए सूरज को कोई नहीं पूछता..!"

रवि-"बस बस.. तू जीती.. मैं हारा..! अब थोड़ा आराम कर ले, क्योंकि श्रीकांत जी भी आते ही होंगे..! और फिर उनसे भी न जाने कितनी देर तक तू बातें करेगी..! और ये तो मानना पड़ेगा, कि तुझमें बोलने की ताकत मुझ से 10 गुनी ज्यादा है। मैं तो थक जाता हूं इतनी बातें बोलते बोलते..!"

सोना-" थक मैं भी जाती हूं। लेकिन जहां जिंदगी का सवाल होता है.. केरियर का सवाल होता है... लाइफ का सवाल होता है... वहां थकान नहीं आती... बल्कि बोलने से और भी ऊर्जा का संचार होता है.. और नई-नई बातें दिमाग में आती है..!"

रवि-" ठीक है। अभी श्रीकांत जी से क्या बातें करनी है तुझको, थोड़ा इस पर भी विचार कर। लेकिन अपना मुंह बंद करके। मतलब मन मन में..!"

सोना-" उसकी जरूरत नहीं है। क्योंकि वह जैसा कहेंगे, उसी हिसाब से उनसे बात करनी होगी। और मुझे क्या मालूम कि यहां आने पर वो क्या कहेंगे मुझसे..?

और जब ये  मुझे मालूम ही नहीं है कि उन्होंने मुझसे क्या कहना है, तो मैं क्या सोचूं, और किस प्रश्न पर विचार करूं..?

यहां सब कुछ तुरंत सोचना पड़ता है, और सही सही सोचना पड़ता है.. और तुरंत उस पर अमल भी करना पड़ता है..!"

रवि-"ओके। फिर एक काम ये  कर, कि यहां इतनी सारी पत्रिकाएं रखी है तू उनको देख। और एंजॉय कर..!"

सोना-" यह पत्रिकाएं तो डेड है यार..! जबकि तू अलाइव है..! इसलिए चल, मैं भी थोड़ी देर आराम ही कर लेती हूं, जब तक श्री कांत जी नहीं
आते। " और यह कह कर सोना रवि के बेड पर उसके सीने पर अपना सर रख कर सो गई।
~विजय कांत वर्मा


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3 Comments

Shalini Sharma

22-Sep-2021 11:57 PM

Nice

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Fiza Tanvi

17-Sep-2021 05:38 PM

Bahut acchi

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🤫

16-Sep-2021 10:23 PM

बढ़िया कहानी...

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